Thursday, February 16, 2012

Anmol Hai Jal

                                                                     अनमोल है जल 
ज़िन्दगी  की डोर, जीवन की आशा, जीने की ज़रुरत इन सब के लिए भगवन ने हमे दिया एक उपहार जो अनमोल है. इंसान, पशु-पक्षी जानवर सब के जीने का सहारा, निर्मल शीतल पानी (जल). इस शब्द मैं छुपा है पृथ्वी के जीवो की ज़िन्दगी. हम पानी के बिना नहीं रह सकते, पर हम करते क्या है?

एक आम आदमी सुबह उठता है ब्रुश करता है उस दोरान वोह मूह धोने के लिए नल चालू करता है पर ब्रुश होने तक वोह नल चालू रहता है. नहाने के समय ऊँची आवाज मैं सी- दी प्लयेर चलता है और आनंदमय फुवारा (शोवेर) लेता है, आराम से नहाता है और फिर वह काम के लिए निकलता है अपनी चमकीली साफ़ गाडी मैं जो उसके भैटने के पहले साफ़ करवाई गयी थी. घर के सफाई करते वक़्त, बर्तन ससफ करते वक़्त फ़ोन आता है और काम करने वाला बातों पर लग जाता है. यह हमारा जीवनकाल है.

इस क्रम मैं शुरू से अंत तक कौन पीड़ा सह रहा है, कौन अपने आप को बरबाद, फ़िज़ूल जाता हुआ देख रहा है. वोह हमसे कुछ कह नहीं सकती तोह क्या हम उसे समाज नहीं सकते. आज जिस मात्रा मैं जल को बहाया जा रहा है, उसे प्रदूषित किया जा रहा है वो पहले कभी नहीं हुआ. क्या आज हम इतने स्वार्थी हो गए है की कुदरत की उपहार का दुरूपयोग किये जा रहे है.


क्या होगा अगर कल हमारी आने वाली पीड़ी किए लिए पीने का पानी ना रहा ?, क्या जवाब देंगे हम उन्हें ?. अगर हम अपने कल मैं खुशाली चाहते है तो स्थिथि को बदलना होगा. हर छोटे से छोटे कार्य मैं जल का महत्व समजना होगा. जहा तक हो सके फुवारा ना ले (अगर ले तो जल्दी नहाइए). कार वाश के लिए सीमित बाल्टियाँ ले नदी तालाब मैं कचरा ना पह्के (खास कर के प्लास्टिक) और काम करते समय नल को बांध करना ना भूले. हम अगर जल्दी सुधरे तोह आने वाले कल के लिए आचा हो गा.

पानी मुफ्त में मिलता है, पता है क्यों क्युकी ना तुम उसे खरीदने की औकात रखते है, ना तोह उसे बना सकते है. यह इस्वर की बनायीं कुदरत की डैन है. "कृपया इसे संभाले"


सिमरन सिंह (फ.य.बी.म.म.)
रोल नो: ४६

स्पेशल थैंक्स
शिक्षिका अनुषा 

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